Friday, September 27, 2019

गौशाला के एक सीलन भरे कमरे में तेज़ बुखार में आज उसका दूसरा दिन था। दोपहर होने को थी,अन्न का एक दाना भी पेट में नही गया था।खाली पेट, पास पड़ी दवा की गोली निगलने की हिम्मत नही हो रही थी। किसी तरह बाहर निकला। बाहर कई दयालु व्यक्ति गायों की सेहत और खान पान पर चिंता कर रहे थे..…अचानक उसे दुनिया घूमती हुई नजर आयी....और वो वहीं ढेर हो गया।

दूर से उनमें से ही एक दयालु की आवाज़ उसके कानों तक आ रही थी...... इन मज़दूरों का क्या है...स.....साले ने दिन में ही चढ़ा ली होगी.....

डॉ राजीव सिंह..बरेली

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