Friday, September 27, 2019

गौशाला के एक सीलन भरे कमरे में तेज़ बुखार में आज उसका दूसरा दिन था। दोपहर होने को थी,अन्न का एक दाना भी पेट में नही गया था।खाली पेट, पास पड़ी दवा की गोली निगलने की हिम्मत नही हो रही थी। किसी तरह बाहर निकला। बाहर कई दयालु व्यक्ति गायों की सेहत और खान पान पर चिंता कर रहे थे..…अचानक उसे दुनिया घूमती हुई नजर आयी....और वो वहीं ढेर हो गया।

दूर से उनमें से ही एक दयालु की आवाज़ उसके कानों तक आ रही थी...... इन मज़दूरों का क्या है...स.....साले ने दिन में ही चढ़ा ली होगी.....

डॉ राजीव सिंह..बरेली

Thursday, September 19, 2019

अनुभूति

रात के 1.00 बज रहे थे।चाय बेचने वाले खोखे पर बैठे एक शख़्स और सड़क पर पड़े छिलकों और कूड़े से अपना पेट भरने की जुगत में लगी एक गाय को छोड़ हर तरफ सन्नाटा पसरा था। चौराहे के दूसरे कोने पर पुलिस चौकी के पास रोड पर एक पुलिस का सिपाही बैठा था।

अचानक एक मिड साइज़ कार रुकी औऱ उससे दो लोग उतरे। उन्होंने एक उड़ती सी दृष्टि चौराहे के चारो ओर फेंकी और फिर तेजी से उस गाय को अपनी कार में ठूसने लगे। चाय की दुकान वाले व्यक्ति ने उम्मीद भरी नज़र से पुलिस वाले की तरफ देखा । पुलिस वाला भी भावहीन चेहरे के साथ चुपचाप सब देख रहा था। गाड़ी में ठूंसते ही ड्राइवर ने गाय को बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया और गाड़ी घुमा कर सीधी करने लगा।

चाय वाले के अंदर का इंसान अचानक जग गया , उसने दुकान से निकल कर चौकी की तरफ आ के शोर मचाना शुरू कर दिया। कार अब तक चौराहे से आगे निकल गई थी। शोर सुन कर चौकी से एक दरोगा और सिपाही बाहर निकल कर आये।

क्या है बे, काहे पगला रहे हो? पुलिसिया रौब में दरोगा जी दहाड़े।

साहब ,अभी अभी दो लोग उस कार में गाय लेके गए हैं। दीवान जी तो यही बैठे है इनसे पूछ लीजिये.....जल्दी करिए अभी अगले मोड़ तक ही पहुंचे होंगे।

देखो बुढ़ऊ तुम ज्यादा  बोल रहे हो।अरे कोई शिकायत करेगा तभी तो पुलिस कुछ करेगी। एक तो ग़ैरकानूनी ढंग से यहां खोखा जमाये बैठे हो ,ऊपर से पुलिस को ज्ञान बांट रहे हो.....तुम्हारी माँ का........

अब भी चौराहे पर  दूर तक फैले सन्नाटे के साथ सब कुछ पहले जैसा था बस वो गाय सीन से गायब थी।

डॉ राजीव सिंह

Tuesday, January 10, 2017

      भोजीपुरा के पास के गांव की हमशीरन की बकरी ब्लॉक के सरकारी अस्पताल पर डॉक्टर की राह जोहते जोहते मर गई....किसको क्या फर्क पड़ता है
       इंसानो की जान की कुछ कीमत होती है, अरे भाई बहुत होती है पर जानवरों की जान.....बरेली ही नहीं लगभग सारे प्रदेश में वेटनरी डॉक्टर्स की चुनावों में ड्यूटी लगा दी गई।
      भाई रईस लोगों के कुत्ते और "माननीय" लोगों की गाय को तो इलाज़ मिल जायेगा ,जज साहब की भैंस को भी सेवा मिल जायेगी पर हमशीरन की बकरी तो बिना इलाज़ के मर जायेगी। एक बकरी ही तो थी ....मर गई तो कौन सी क़यामत आ गई।
      ब्लॉक से 5 किलोमीटर की दूरी के गांव जटओंपट्टी से फूल सिंह अपनी भैंस को गर्भित कराने आज  ब्लॉक के हॉस्पिटल आये थे ,रस्ते भर सोचते हुए क़ि बार बार धोका दे रही है,इस बार डॉक्टर साहब के हाथों से ही रूकेगी......तीन घंटे बैठने के बाद हिम्मत जवाब दे गई जब कम्पाउण्डर ने बताया कि साहब तो जादोंपुर में वाहनों की तलाशी करवा रहे हैं,शायद न आ पाएं। फूल सिंह अपनी भैंस को ढेर सारी निराशा के साथ लेके वापस लौट रहे है। वो समझ नहीं पा रहे हैं , जानवरों का तो AIIMS भी ब्लॉक का हॉस्पिटल ही होता है ,फिर डॉक्टर साहब काहे चुनाव के चक्कर में पड़े है।

जय हो इस सिस्टम की और इसके निर्माताओं की,जो सिर्फ गरीब के लिए बना है.....गरीब की मदद के लिए।