अनुभूति
रात के 1.00 बज रहे थे।चाय बेचने वाले खोखे पर बैठे एक शख़्स और सड़क पर पड़े छिलकों और कूड़े से अपना पेट भरने की जुगत में लगी एक गाय को छोड़ हर तरफ सन्नाटा पसरा था। चौराहे के दूसरे कोने पर पुलिस चौकी के पास रोड पर एक पुलिस का सिपाही बैठा था।
अचानक एक मिड साइज़ कार रुकी औऱ उससे दो लोग उतरे। उन्होंने एक उड़ती सी दृष्टि चौराहे के चारो ओर फेंकी और फिर तेजी से उस गाय को अपनी कार में ठूसने लगे। चाय की दुकान वाले व्यक्ति ने उम्मीद भरी नज़र से पुलिस वाले की तरफ देखा । पुलिस वाला भी भावहीन चेहरे के साथ चुपचाप सब देख रहा था। गाड़ी में ठूंसते ही ड्राइवर ने गाय को बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया और गाड़ी घुमा कर सीधी करने लगा।
चाय वाले के अंदर का इंसान अचानक जग गया , उसने दुकान से निकल कर चौकी की तरफ आ के शोर मचाना शुरू कर दिया। कार अब तक चौराहे से आगे निकल गई थी। शोर सुन कर चौकी से एक दरोगा और सिपाही बाहर निकल कर आये।
क्या है बे, काहे पगला रहे हो? पुलिसिया रौब में दरोगा जी दहाड़े।
साहब ,अभी अभी दो लोग उस कार में गाय लेके गए हैं। दीवान जी तो यही बैठे है इनसे पूछ लीजिये.....जल्दी करिए अभी अगले मोड़ तक ही पहुंचे होंगे।
देखो बुढ़ऊ तुम ज्यादा बोल रहे हो।अरे कोई शिकायत करेगा तभी तो पुलिस कुछ करेगी। एक तो ग़ैरकानूनी ढंग से यहां खोखा जमाये बैठे हो ,ऊपर से पुलिस को ज्ञान बांट रहे हो.....तुम्हारी माँ का........
अब भी चौराहे पर दूर तक फैले सन्नाटे के साथ सब कुछ पहले जैसा था बस वो गाय सीन से गायब थी।
डॉ राजीव सिंह